''ध्र्मशास्त्रा में निरूपित संस्कारों का व्यावहारिक पक्ष
1
Author(s):
SUSHMA DEVI
Vol - 4, Issue- 2 ,
Page(s) : 189 - 203
(2013 )
DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
Abstract
वैदिक साहित्य के उपरान्त ध्र्मशास्त्रा हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के परिचायक ग्रन्थ हैं। जो हमे विधि तथा निषेध् दोनों का ज्ञान कराते हुए, ध्र्म की ओर उन्मुख करते हैं। संस्कार भी ध्र्म का ही एक रूप हैं, क्योंकि संस्कार धर्मिक-कृत्य के रूप में स्वीकृत व्यकितत्व के विकास के प्रथम सोपान माने गये हैं। कहा गया है कि - ''जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से तो प्रत्येक व्यकित शूद्र पैदा होता है और संस्कारों के द्वारा वह दूसरा जन्म लेकर द्विज कहलाता है। ये मनुष्य के जन्म से पूर्व ही प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त निरन्तर उसका शारीरिक, मानसिक, बौ(िक एवं वैयकितक परिष्कार कर उसे अèयात्म की ओर अग्रसर करते हैं, जिससे व्यकित ही नहीं वरन समाज भी परिपुष्ट होता है। वस्तुत: मानव जीवन का सर्वाÄõीण विकास ही इनका उददेश्य है।
- नहि कर्मभिरेव केवलै ब्रह्मत्वप्राप्तिः प्रज्ञानकर्मसमुच्यात् किल मोक्षः। एतैस्तु संस्कृतः आत्मनोपासनास्वाध्क्रिियते। मनु., 2/28 पर मेधतिथि
- आप्टे, वामन शिवराम, संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ.1051
- पाण्डेय, डाॅ. राजबली, हिन्दू-संस्कार, पृ.17
- (क) वैदिकैः कर्मभिः पुण्यैर्निषेकादिद्र्विजन्मनाम्। कार्यः शरीरसंस्कारः पावनः प्रेत्य चेह च।। गार्भैर्होमैर्जातकर्मचैडमौ×जीनिबन्ध्नैः। बैजिकं गार्भिकं चैनो द्विजानामपमृज्यते।। मनु., 2/26-27 (ख) या. स्मृ., 1/13
- पूर्व मीमांसासूत्रा, 3.1.3 पर शबर भाष्य
- येन शरीरं मन आत्मा चोत्तमा भवन्ति सः संस्कारः इत्युच्यते। ते च निषेकादिश्मशानान्ताः षोडशप्रकाराः। डाॅ. प्रति प्रभा गोयल, भारतीय संस्कृति, पृ.64
- पाण्डेय, डाॅ. राजबली, हिन्दू संस्कार, पृ.21-23
- मनु., 1/16 तथा या. स्मृ. 1/10-12, 14, 36, 51, 52
- गौ. स्मृ., 8/3
- व्या. स्मृ., 1/13-14
|