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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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हरियाणवी लोकनाटय(सांगों) में सामाजिक सरोकार

    1 Author(s):  DR . BALJEET SINGH

Vol -  4, Issue- 2 ,         Page(s) : 268 - 274  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

हरियाणा की धर्म-धरा को भारतीय संस्कृति का पालना कहा जाता है। धर्म एक दर्षन के अतिरिक्त यहां की लोककलाओं ने इसकी संस्कृति को समृद्व बनाने में अहम भूमिका निभार्इ है। और इन लोक कलाओं में अग्रगण्य रहा है यहां का लोकनाटय (सांग) लोकनाटय का प्रभाव क्षेत्र केवल नाटय-कला तक ही सीमित नही रहता, अपितु इसकी परिधि में परंपराएं पलती है, इतिहास बोलता है और वे मान्यताएं प्रतिबिमिबत होती है जो शताबिदयों से हमारे समाज का पथ-दर्षन करती आर्इ है।

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1. डाॅ. पूर्णचंद्र शर्मा, पं. लखमी चंद ग्रन्यावली ह.सा.अ. पृ.-9
2. डाॅ. जगदीष नारायण, हरियाणा प्रदेष के लोकगीतो का सामाजिक पक्ष, पृ.-35
3. जगदीष चन्द्रमाथुर, भारतीय सहित्य वर्ष 10 अंक 1-2, पृ.-4
4. सप्तसिन्धु (गंगाजमनी लोकमंच), सितम्बर 1976, पृ.-38
5. रधुबीर मयाणा ‘पं. मांगें राम ग्रन्थावली, पृ.ं-48
6.    डाॅ. पूर्णचन्द, हरियाणा की लोकधर्मी नाट्य परम्परा, पृ.-21
7. शुकदेव स्वरूप, पं. लखमी चंद सांगी का ‘रत्न-कोष’ तृतीय संस्करण, 2001, पृ.-83
8. शुकदेव स्वरूप, पं. लखमी चंद सांगी का ‘रत्न-कोष’ तृतीय संस्करण, 2001, पृ.-84
9. डाॅ. बिजेन्द्र सिंह, हरियाणा के सागों मे सौन्दर्य निरूपण, पृ.-216
10. रामफल चहल रघुवीर सिंह मथाना, फौजी मेहर सिंह, पृ.-54
11. शुकदेव स्वरूप, पं. लखमीचंद सांगी का रत्नकोष तृतीय संस्करण, पृ.-289
12. शुकदेव स्वरूप, पं. लखमी चंद सांगी का रत्नकोष तृतीय संस्करण, पृ.-47
13.रघुवीर सिंह मथाना, कवि षिरीमाण, प. मांगे राम , हरियाणवी ग्रन्थावली, पृ.-68-69

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