International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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प्रबोध-चन्द्रोदय नाटक की पृष्ठभूमि : एक विवेचन
1 Author(s): DR.ANITA JHA
Vol - 9, Issue- 4 , Page(s) : 293 - 301 (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
श्रीमद्भागवत में पुरंजनोपाख्यान आता है। ‘‘पुरम् पुमांसे व्यनक्ति असौपुरजनः। इस व्युत्पत्ति से पुरंजन शब्दार्थ पुरूष होता है। यथा-पुरंजनी उसकी स्त्री होती है। मैत्री विदुरजी ेस कहते हैं कि भगवान शंकर ने प्रचेताओं को उपदेष दिया तथा प्रचेताओं ने शंकर जी की भक्तिभाव से पूजा की । तदनन्तर उनके चले जाने पर प्रचेताओं जल में तप किये। उनका चित्त कर्मकाण्ड में रम गया था, अतः उन्हें अध्यात्मविद्या विषारद परम् कृपाल नारदजी ने उपदेष दिया कि राजन् कर्मो के द्वारा तुम्हारा आत्मकल्याण कैसे संभव होगा, क्योंकि दुःखों का आत्यन्तिक नाष एवं परमानन्द की प्राप्ति ही आत्मकल्याण है।