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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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वेद में नारी के विशेषाधिकार

    1 Author(s):  MANOJ KUMAR AGRAHARI

Vol -  8, Issue- 8 ,         Page(s) : 113 - 118  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

नृ (मनुष्य) शब्द से स्त्रीत्व की विवक्षा में ‘ङीन्’ प्रत्यय होकर ‘नारी पद निष्पन्न है,1 जिसका अर्थ हुआ - मानुषी (मनुष्य जातीय) स्त्री। व्युत्पत्ति स्त्री शब्द का प्रयोग ‘गर्भधारण योग्यता’ (सत्यायति गभाऽस्यमिति) के आधार पर होता है और यह मनुष्येतर प्राणी में भी उपलब्ध है। अतएव स्त्री शब्द व्यापक हुआ तथा नारी व्याप्य। व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध होने पर भी स्त्री शब्द को नारी का पर्याय माना गया है।

1- ‘नृनरयोवृद्धिश्च’ इति शांगर वादि 4.1.73 गणे पाठान् डीन्। जाति लक्षणस्य 4.1.7.63 डीषोऽपवादः। आकृति ग्रहणा जातिः इति नृ शब्दों जातिवाचकः।
2- ऋग्वेद -अनुवाद-8 सूक्त-183 श्लोक सं0 10
3- ऋग्वेद-अनुवाद-8 अ0 3 सूक्त-85
4- ऋग्वेद-अनुवादक-1 सूक्त सरका-167
5- ऋग्वेद-4.42.8.1.16.13
6- ऋग्वेद-10.85.38
7- ऋग्वेद-11.1.112
8- ऋग्वेद-5.61.27
9- ऋग्वेद-5.52.61.8.35.38
10- ऋग्वेद-10.34.3
11- ऋग्वेद-म0 10 अ0 7 सू0 85
12- अथर्ववेद- 11.3.6.19
13- अथर्ववेद-10.9.126
14- ऋग्वेद-8.91.5-6
15- अर्थववेद भाश्य-पृष्ठ-545(शौनकीय)वि0 बन्धु प्रकाशन होशियारपुर सं01 म07

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