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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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संत काव्यः कल, आज और कल

    1 Author(s):  DR. RAJINDER SINGH

Vol -  7, Issue- 11 ,         Page(s) : 62 - 68  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

समकालीन भौतिकवादी परिवेश में लोग आत्मकेन्द्रित हो गए हैं। स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वे उचित अवसर की तलाश में रहते हैं। भूमण्डलीकरण के इस दौर में तथा विज्ञापन और भोगवादी परिवेश में मनुष्य को विश्व केन्द्रित कर उसका महिमामण्डन भले ही किया जाये लेकिन अवसरवादिता और बाजारवादिता की भावना ने उसके स्वभाव को संकीर्ण रूप प्रदान कर दिया है। जिसका प्रभाव भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर निश्चित रूप से दिखाई देता है। इधर समाज पर पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति भी अपना प्रभाव छोड़ रही है। ऐसी स्थिति में न तो भारतीय परम्परा और पद्धति को पूर्णतः अपनाया जा रहा है और न ही पाश्चात्य प्रभाव को ही नकारा जा रहा है।

1 डाॅ0 नामवर सिंह, इतिहास और आलोचना, पृ0 17
2 श्यामसुन्दरदास, कबीर ग्रन्थावली, पृ0 220
3 वियोगी हरि, संत सुधासार (नामदेव), पृ0 55
4 पृथ्वी सिंह आजाद, रविदास दर्शन, पृ0 124
5 श्यामसुन्दरदास, कबीर ग्रन्थावली, पृ0 203
6 स्वामी मंगलदास, श्री स्वामी दादूदयाल जी की अनभै वाणी, पृ0 273
7 महीप सिंह, गुरू नानक और उनका काव्य, पृ0 82
8 आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, मध्यकालीन धर्म साधना, पृ0 216
9 श्यामसुन्दरदास, कबीर-ग्रन्थावली, पृ0 152
10 वही0वही0, पृ0 118
11 पलटू साहब की बानी, भाग -2, पृ0 32
12 श्याम सुन्दरदास, कबीर ग्रन्थावली, पृ0 82
13 पृथ्वी सिंह आजाद, रविदास दर्शन, पृ0 110
14 डाॅ0 श्यामसुन्दरदास, कबीर ग्रन्थावली, पृ0 114

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