International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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अशोक के समय में भारतीय समाज और संस्कृति

    1 Author(s):  DEVENDER KUMAR

Vol -  6, Issue- 3 ,         Page(s) : 219 - 225  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

बुंदेलखंड में ई० पू० ८०० से ई० पू० २०० तक का काल महाजनपदीय शास्रों का परिचय देता है। मध्यप्रदेश शब्द इतना व्यापक है कि उसमें बुंदेलखंड पर बनने वाले प्राय: सभी जनपदों सा समावेश हो जाता है। मध्यप्रदेश में चेदि, वत्स, मत्स्य और शूरसेन की गणना की जाती है। मौर्य युग के पूर्व मध्यप्रदेश में नागवंश का साम्राजय रहा है। विद्वानों की दृष्टि में नाग ब्राह्मण माने गए हैं तथा इनसे शैव साधना जुड़ी हुई है। नागों तथा नवनागों की धर्मसाधना के प्रतीक सिक्कों पर मिलते हैं। नन्दी, त्रिशूल और शिवनिग्रह प्रमुख माने जाते हैं। उनकी मूर्तियाँ नागछत्रों से युक्त हैं और वे अपने भारशिव तथा शिव का नन्दी कहते हैं। नागों का उत्तराधिकार वाकाटकों को मिला था। वाकाटक भी ब्राह्मण थे। नागों के वंश को शिशुनाग वेश भी कहा गया है। बिम्बीसार के समय में समस्त मध्यप्रदेश में बस्तियाँ थी। शिशुनाग, काकवर्ण और महान्दी इस जाति के प्रबल शासक रहे हैं। बुंदेलखंड में नाग लोग मातृतंत्र को मानने वाले थे। जिसका प्रमाण ॠग्वेद के सपंराज्ञी के उल्लेख से मिलता है। नागों का स्री तंत्र महाभारत काल में पुरुष तंत्र में बदल गया।

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