International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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उपाख्यानों का वर्ण्य-विषय
1 Author(s): MUKESH KUMAR
Vol - 6, Issue- 5 , Page(s) : 100 - 104 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
वैदिक मन्त्रों की व्याख्या अनेक दृष्टि्यों से की गयी है। इस प्रसंग में याज्ञिक, ऐतिहासिक एवं आख्यान, नैरुक्त, अधिदैवत, परिव्राजक एवं अध्यात्म और वैयाकरण ये प्रसिद्ध व्याख्यान पद्धतियाँँ हैं। इनमें ऐतिहासिक तथा आख्यान पद्धति विशेष विचारणीय है। निरुक्तकार यास्क ने ऐतिहासिकों एवं आख्यानों का उल्लेख किया है। ये इन मन्त्रों अथवा सूक्तों की व्याख्या तदनुकूल ही करते है। यास्क ने ‘तत्रेतिहासमाचक्षते’ कहकर कुछ मन्त्रों की इतिहासपरक व्याख्या प्रस्तुत की है। इसके साथ ही यास्क ने ‘इत्याख्यानम्’ शब्दों से आख्यानसमय का भी उल्लेख किया है। आख्यानविद् वैदिक सूक्तों तथा मन्त्रों में आये नामों अथवा घटनाओं को आधार बनाकर आख्यानों की उद्भावना करते रहे होंगे। इस प्रकार ऐतिहासिक वेदार्थ पद्धति के साथ-साथ आख्यानात्मक पद्धति भी प्रचलन में आयी। सम्भवत: पौराणिक साहित्य ने इस परम्परा से पर्याप्त प्ररेणा ग्रहण की हो। यास्क की स्पष्ट मान्यता है कि मन्त्रदृष्टा ऋषियों की अपने द्वारा दृष्ट अर्थ को आख्यान से संयुक्त करने में प्रीति होती थी।