International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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रामायण का अंतर्द्वंद

    1 Author(s):  BIBHA MADHAWI

Vol -  7, Issue- 2 ,         Page(s) : 175 - 184  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

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Abstract

आज भौतिकवादी समृद्धि के युग में पाश्चात्य संस्कृति के प्रबल आकर्षण में इच्छाशक्ति उन्मत्त होती जा रही है, ऐसे में हमें एक ऐसा आदर्श चाहिए जो संयम और पुरुषार्थ का आदर्श हो। वैसे ही आदर्श हैं सीता-राम का चरित्र। रामचन्द्र क्रियाशक्ति का प्रतीक है। उनका जीवन सही मायने में मनुष्य द्वारा वरण करने लायक कर्मयोग है। अतः आज के युग में सही नारायणावतार, सही मूर्त्ति राम की है। सामाजिक दृष्टि से ‘सीता-राम’ का आदर्श ही हमारी डूबती नैया को बचा सकता है व्यक्ति और समाज दोनों के लिए भवसागर की नाव है। आज इच्छाशक्ति के उन्मत्त नर्तन का युग है। आज युग कर्म बदल चुका है, युगपुरुष की परिभाषा बदल चुकी है। समाज की आकांक्षाओं का रूप भिन्नतर होता जा रहा है। अतः आज के समय के केन्द्रीय आदर्श हैं मर्यादा, त्याग और संयम की मूर्त्तिमान विग्रह ‘सीता’।


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