International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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लोकगीत मारुणी - एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनुशीलन
1 Author(s): JYOTSNA GOME
Vol - 11, Issue- 3 , Page(s) : 18 - 31 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
मालवा में लोक जातियों - जनजातियों द्वारा कई लोकगीत वाचिक रूप में गाये जाते है। वे लेखबद्ध नहीं है, उनके प्रत्येक पर्व, त्यौहार, उत्सव पर लोकगीत गाये जाते है, उन्हीं में से एक लोकगीत ‘माॅरूणी‘ अति प्रसिद्ध है जिसे मालवा में ‘रातीजगा‘ के गीत कहा जाता है। इसमें मुख्यतः मालवा के साथ राजस्थानी पुट भी विद्यमान है। यह मुख्यतः लोकजाति ‘बैरवा‘ द्वारा गाया जाता है, यह जाति मूलतः राजस्थान की है। मालवा में भी इनके निवास स्थल इन्दौर, उज्जैन, रतलाम, देवास, नागदा, भोपाल में है। इनमें ‘रातीजागरण‘ अति प्रसिद्ध है, ‘रातीजागरण‘ में मुख्यतः देवी-देवताओं के गीत, भेरूजी के गीत, रामदेव बाबा के गीत, ऊत महाराज के गीत, सतीमाता के गीत गाये जाते है। उनमें से ‘माॅरूणी‘ भी एक लोकगीत है। माॅरूणी गीत में मालवी, राजस्थानी एवं मारवाणी भाषा का सम्मिश्रण है, यह गीत रातभर निरन्तरता के साथ गाया जाता है। इस गीत को गाते समय महिलाएँ भावुक हो जाती है तथा कई प्रकार की अतिशयोक्ति भी की जाती है साथ ही लोकगीत द्वारा कई शिक्षाएँ भी दी जाती है। ‘माॅरूणी‘ गीत गाते समय गीत में मारूणी की मृत्यु से लेकर पुर्नजीवन तक सभी महिलाएँ निरन्तर गाती रहती है, इस बीच ना तो वे खान-पान करती है, ना ही विश्राम करती है।
1) पार्वती बाई सुखलिया, इन्दौर 2) धापू बाई सुखलिया, इन्दौर3) केसर बाई सुखलिया, इन्दौर4) ईमरती बाई नेहरू नगर, इन्दौर5) हरली बाई किशनपुरा, उज्जैन6) रजनी बाई किशनपुरा, उज्जैन7) गौरा बाई नागदा, उज्जैन